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राजस्थान में किसान आंदोलन

राजस्थान में किसान आंदोलन
राजस्थान की राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक संरचना सामंती रही है। यह सरंचना त्रिस्तरीय थी जिसमें क्रमशः शासक, जमींदार व कृषक वर्ग सम्मिलित थे। इन सभी के परस्पर अंतर्सबंध्ी पर यह व्यवस्था टिकी थी। 19वीं शती के अंत मे संबध् सौहार्दपूर्ण रहे। जहाँ एक और शासक अपनी शक्ति के लिये सामंतों पर निर्भर रहते थे, वहीं सामंतों ने कृषकों को उनके परंपरागत अध्किारों से वंचित न करके अपना सुदृढ़ आधर तैयार कर रखा था। भूमि दो प्रकार की थी- खालसा व जागीरी और दोनों क्षेत्रों के किसानों की दशा में अंतर भी स्पष्ट दिखलाई पड़ता था। 19वीं शती के अन्त मे राजस्थान का परिदृश्य बदलना आरम्भ हा े गया। इसका कलु कारण दश्े ा भर की बदली राजनीतिक परिस्थितियाँ, अंग्रेजो का आतंक, रियासतों की अव्यवस्था, जागीरदारों का शोषण व देश भर मे चल रहे राजनीतिक आंदोलनों का प्रभाव था।

कृषक असंतोष के कारण :– जहाँ एक ओर राजस्थान के कृषको की राजनीतिक चेतना भारतीय
राष्ट्रीय आंदोलन से प्रभावित मानी जा सकती है, वहीं दूसरी ओर निश्चित रूप से कुछ ऐसी सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों थी जो राजस्थान के किसानों के लिये विशिष्ट थी।
 • अंग्रेजों के प्रभाव मे आकर शासकों ने अपनी प्रजा की ओर पर्याप्त ध्यान देना छोड़ दिया। शासकों व जागीरदारों ने स्वयं का अस्तित्व ही ब्रिटिश सत्ता पर आधरित समझ लिया। इसलिये, शासकों की निर्भरता जागीरदारों पर व जागीरदारों की निर्भारता कृषकों पर समाप्त होती चली गई।
 • राजस्व अध्कि वसूलने के साथ-साथ ही कृषकों से ली जाने वाली बेगारों व लागों मे भी अप्रत्याशित वृि( देखी गई। कुछ राज्यों मे तो लोगों की संख्या लगभग 300 तक थी।
 • जागीरदारों व सामंतों की निर्भरता धतु मुद्रा पर बढ़ती गई। यह अंग्रेजों की अत्यन्त विलासी जीवन शैली को अपनाने के कारण हुआ इनके नये खर्चो का बोझ कृषि व्यवस्था पर पड़ा। दूसरा कारण परम्परागत चाकरी को रोकड़ मे परिवर्तित करना था। अंग्रेजी प्रशासनिक व्यवस्थाओं को अपनाने के पफलस्वरूप सामंतों का कृषको के प्रति उदार व पैतृक नजरिया बदल गया।
 • कृषक असंतोष का एक प्रमुख कारण अन्य व्यवसायों से विस्थापित लोगों का कृषि पर निर्भर हो जाना था। यह लक्षण अंग्रेजी औपनिवेशिक नीति का सीध परिणाम था। कृषक
 • मजदूरों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने से जागीरदारों के रूख मे अध्कि कठोरता आ गई।
 • कृषि उत्पादित मूल्यों मे गिरावट व इजापफा दोनों स्थितियाँ कृषकों के लिये लाभकारी नही थे। जहाँ एक ओर कीमत मे गिरावट के कारण कृषकों की बचत की मूल्य कम हो जाता
 • था, वहीं कीमते बढ़ने के कारण भी उसे लाभ का भाग नही मिल पाता था क्योकि जागीरदार लगान जिन्स में लेता था। 
 • जागीरी क्षेत्रा मे कृषकों का असंतोष जागीरदारों के जुल्मो के विरू( होता था। किन्तु जागीरदारों के अपने क्षेत्रा में स्वतंत्रा रहने के कारण उसे शासको अथवा अंग्रेज अध्किारियों से न्याय की उम्मीद नहीं  |   

बिजौलिया का किसान आंदोलन :–
. बिजौलिया भीलवाड़ा जिले में स्थित हैं यहॉं किसान आंदोलन 1897 में प्रारम्भ तथा 1941 में समाप्त हुआ। बिजौलिया में मुख्यतः धकड़ जाति के किसान थे।
. भारत में संगठित कृषक आंदोलन प्रारम्भ करने का श्रेय मेवाड़ के प्रथम श्रेणी के ठिकाने बिजौलिया को है। बिजौलिया ठिकाने के संस्थापक अशोक परमार थे।
. अशोक परमार अपने मूल स्थान जगमेर ;भरतपुरद्ध से मेवाड़ के राणा सांगा की सेवा में चित्तौड़ आ गया था। 1527 ई. में खानवा के यु( में अशोक की वीरता को देखते हुए राणा सांगा ने उसे ऊपरमाल की जागीर प्रदान की।
. यहाँ के शासक राव कृष्णासिंह के समय बिजौलिया की जनता से 84 प्रकार की लागतें ली जाती थी।
. 1903 ई. राव कृष्णसिंह ने ऊपरमाल की जनता पर कन्या विवाह के अवसर पर 5 रूपये का ‘चंवरी कर’ लगाया। इसके विरोध् स्वरूप किसानों ने कन्याओं के विवाह स्थगित कर दिए
तथा किसानों ने ठिकाने की भूमि पर खेती करना बंद कर दिया। विवश होकर राव कृष्णसिंह ने चंवरी कर समाप्त कर दिया तथा लगान भी 40 प्रतिशत कर दिया।
. बिजौलिया के किसान आंदोलन का नेतृत्व सर्वप्रथम साध्ु सीताराम दास द्वारा किया गया।
. 1906 ई. में राव कृष्णसिंह की मृत्यु के बाद उसके उत्तराध्किारी पृथ्वीसिंह ने ‘तलवार बंधई’ की लागत ;उत्तराध्किारी शुल्कद्ध लगा दी। किसानों ने साध्ु सीताराम दास, फतहकरण चारण और ब्रहृादेव के नेतृत्व में इस कार्यवाही के विरोध् में 1913 ई. में ऊपरमाल के क्षेत्रा को पड़त रखा और
ठिकाने को भूमि कर नहीं दिया।
. बिजौलिया के किसान आंदोलन में 1916 ई. में श्री विजयसिंह पथिक ने प्रवेश किया। विजयसिंह पथिक का मूल नाम भूपसिंह था। विजयसिंह पथिक ने ‘ऊमाजी के खेड़ा’ नामक स्थान को किसान क्रांति का केन्द्र स्थल बनाया।
. पथिक ने 1917 ई. में श्री सीताराम दास एवं श्री माणिक्यलाल वर्मा के सहयोग से हरियाली अमावस्या के दिन ‘ऊपरमाल पंच बोर्ड’ नामक संगठन की स्थापना की तथा मन्ना पटेल को
इस पंचायत का प्रमुख बनाया।
. बिजोलिया ठिकाने में भूमि कर निश्चित करने के लिए ‘कूता प्रथा’ प्रचलित थी।
. 1916 ई. में किसानों ने साध्ु सीताराम दास की अध्यक्षता में ‘किसान पंच बोर्ड’ की स्थापना की।
. भारत सरकार के ए.जी.जी. हॉलैण्ड व किसानों के बीच समझौते के अनुसार 84 में से 32 लागतें माफ कर दी गई, अन्ततः 1922 ई. में आंदोलन समाप्त हो गया, लेकिन ठिकानें ने समझौते का पालन नहीं किया।
. श्री गणेश शंकर विद्यार्थी संपादित एवं कानपुर से प्रकाशित समाचार पत्रा ‘प्रताप’ के माध्यम से तथा इसके साथ ही अभ्युदय, भारत, मित्रा, मराठा आदि समाचार पत्रों के माध्यम से विजयसिंह पथिक ने बिजौलिया किसान आंदोलन को समूचे भारत में चर्चा का विषय बना दिया।
. मेवाड़ के प्रधनमंत्राी सर जी. विजयराघवाचार्य के प्रयास से किसानों को पुनः भूमि दे दी गई और 1941 ई. में बिजौलिया आंदोलन का पटाक्षेप हो गया।
. बिजौलिया किसान आंदोलन सर्वाध्कि लंबे समय तक चलने वाला किसान आंदोलन था।
. गांध्ीजी ने अपने सचिव महादेव देसाई को किसानों की समस्या का अध्ययन करने के लिए बिजौलिया भेजा।
. बिजौलिया किसान आंदोलन का मुख्य ध्येय बिजौलिया के जागीरदार द्वारा किसानों पर लगाये भारी करों, विभिन्न लागतों तथा बेगार प्रथा के विरू( अपना असंतोष व्यक्त कर न्याय
प्राप्त करना था।

बेंगू किसान आंदोलन :–

बेंगू किसान आंदोलन 1921 से 1925 के बीच चला। बिजौलिया किसान आंदोलन से प्रेरित पड़ोस की जागीर बेंगू ;चित्तौड़गढ़द्ध मेनाल ;भीलवाड़ाद्ध नामक स्थान पर एकत्रित हुए और लाग बाग, बेगार और ऊँचे लगान के विरू( आंदोलन करने का निश्चय किया।
. बेगूं आंदोलन का नेतृत्व राजस्थान सेवा संघ के मंत्राी श्री रामनारायण चौध्री ने किया।
. बेगूं आंदोलन को ‘बोल्शेविक क्रांति’ की संज्ञा भी दी जाती है।
. 1923 ई. में बेगूं ठाकूर अनूपसिंह ने किसानों से समझौता कर उनकी सब मांगे मान ली। परन्तु मेवाड़ सरकार और रेजिडेण्ट ने राजस्थान सेवा संघ और रावत अनूपसिंह के बीच हुए इस समझौते को ‘बोल्शेविक फैसले’ की संज्ञा दी।
. बेगूं के किसान 13 जुलाई 1923 ई. को गोविन्दपुरा में एकत्रा हुए जहॉ सेना ने गोलियॉ चला दी। इस हत्याकांड में ‘रूपाजी’ और कृपाजी’ नामक दो किसानों शहीद हो गए।
. सेना के अत्याचारों से किसानों का मनोबल गिरता देख पथिकजी ने स्वयं बेगूं किसान आंदोलन का नेतृत्व संभाला। 1923 ई. में पथिक जी को गिरफ्रतार कर उन्हें 5 वर्ष की सजा
दी गई।

बूंदी किसान आंदोलन :–

पं. नयनूराम शर्मा के नेतृत्व में 1922 ई. में बूंदी के किसानों ने बेगार, लाल-बाग और ऊँची लगान दरों के विरू( आंदोलन किया। स्त्रिायों ने भी इस आंदोलन में भाग लिया। राज्य ने दमन का सहारा लिया। यह किसान आंदोलन बरड़ क्षेत्रा में हरिभाई किंकर, रामनारायण चौध्री और पं. नयनूराम शर्मा ने चलाया।
. अप्रैल 1923 में डाबी में सम्पन्न हुए किसानों के सम्मेलन पर पुलिस ने गोली चला दी, इस आंदोलन में ‘नानकजी भल’ घटनास्थल पर ही शहीद हो गये।

डाबड़ा किसान आंदोलन :–

. लोक परिषद तथा किसान सभा के नेता 13 मार्च, 1947 ई. को आयोजित किसान सम्मेलन में भाग लेने हेतु डाबड़ा ;डीडवाना-नागौरद्ध पहुॅंचे।
. लगभग 600 जाट किसान सम्मेलन में सम्मिलित होने जा रहे थे किन्तु जागीरदार के लगभग 600 सशस्त्रा लोगों ने उन्हें घेर लेकिन इसके बाद बंदूकों, तलवारों और भालों का प्रयोग दोनों पक्षों की ओर से किया गया। इसमें चुन्नीलाल शर्मा व जग्गू जाट शहीद हुए। किसानों का नेतृत्व मथुरादास माथुर ने किया।
. हाबड़ा हत्याकाण्ड का समाचार शीध््र ही देशभर में फैल गया मुम्बई से प्रकाशित ‘वंदे मातरम’, जयपुर के ‘लोकवाणी’ जोध्पुर के ‘प्रजा सेवक और दिल्ली के हिन्दुस्तार टाइम्स आदि
समाचार पत्रों ने इस जघन्य हत्याकांण्ड की घोर निंदा की।

सीकर किसान आंदोलन :–

सीकर आंदोलन का सूत्रापात्रा जाट किसानों द्वारा किया गया। सीकर में 56 प्रतिशत भूमि जाट किसानों के पास थी। इस क्षेत्र में भू राजस्व की अनेक विषमताओं के अतिरिक्त अनेकों लाग-बाग, मापा आदि कर थे। इस प्रकार उपज का अध्किांश भाग ठिकानेदार व ठिकानों के अध्किारियों में बंट जाता था।
. 1922 ई. में राव राजा ठा. कल्याण सिंह द्वारा उपज का 50 प्रतिशत लगान लेना प्रारम्भ करते ही किसानों ने इसका विरोध् किया।
इस किसान आंदोलन के नेता रामनारायण चौध्री व हरि ब्रहृाचारी का सीकर तथा जयपुर राजा की सीमा में प्रवेश निषि( कर दिया।
महिलाओं में जागृति के लिए सरदार हरलाल सिंह की पत्नी किशोरी देवी के नेतृत्व में सीकर जिले के कटराथल गांव में 1934 में एक सम्मेलन हुआ, जिसमें 10 हजार महिलाओं ने भाग लिया। सम्मेलन की प्रमुख वक्ता श्रीमती उतमा देवी ;ठाकुर देशराज की पत्नीद्ध थी। श्रीमती दुर्गा देवी शमा,र् श्रीमती रमा देवी, श्रीमती फूला देवी’ आदि अन्य प्रमुख महिलाएं थी जिन्होंने इस सम्मेलन में भाग लिया।
जयसिंहपुरा किसान हत्याकाण्ड -21 जून, 1934 को डूण्डलोद के ठाकुर के भाई ईश्वर सिंह ने डूण्डलोद में जयसिंहपुरा गांव में खेत जोत रहे किसानों पर हमला कर गोली चलाकर उनकी हत्या कर दी।
कूदन गोली कांड – सीकर के कूदन गांव में किसानों पर 1935 में गोली चलाई गई, जिसमें 4 किसान मारे गये। गोठड़ा व पलथाणा में गोली काण्ड हुआ। 26 मई, 1935 को पूरे देश में सीकर दिवस मनाया गया।
कूदन गोली काण्ड की चर्चा ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में भी हुई।
खूड़ी गोलीकांड – 1935 ई. में सीकर में खूड़ी गांव में किसानों पर कैप्टन वेब ने लाठी चार्ज करवाया, जिसमें 4 किसान मारे गये। यह विवाद किसान दूल्हें द्वारा घोड़ी पर तोरण
मारने के कारण हुआ।
1931 ई. में राजस्थान जाट क्षेत्राीय सभा की स्थापना हुई।
1947 ई. में देश के वातावरण में बदलाव के साथ ही किसानों की समस्त मांगे मानते हुए लाग-बाग व बेगार प्रथा समाप्त कर दी गईं।

मारवाड़ किसान आंदोलन :–
मारवाड़ किसान आंदोलन 1923 से 1947 ई. तक के बीच चला।
. 1923 ई. में श्री जयनारायण व्यास ने ‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ का गठन किया। और इसके माध्यम से मारवाड़ के किसानों को लागतों तथा बेगार के विरू( जागृत करने का प्रयास किया।
. जयनारायण व्यास ने अपने ‘ तरूण राजस्थान’ नामक समाचार पत्रा के माध्यम से किसानों की दुर्दशा तथा जगीरदारों के जुल्मों का पर्दापफाश किया।
. ‘मारवाड़ा की दशा’ तथा ‘पोपाबाई का पोल’ नामक पम्पलेटों में भी जागीरी जुल्मों का मार्मिक वर्णन किया गया।
. जोध्पुर राज्य में ‘तरूण राजस्थान’ पर प्रतिबंध् लगाते हुए 20 जनवरी 1930 ई. को जयनारायण व्यास, आनंदराज सुराणा तथा भंवरलाल सर्राफ को बंदी बना लिया।

अलवर किसान आंदोलन :–
1924 ई. में अलवर राज्य में भूमि बंदोबस्त कर लगान में वृि( की गई। अतः अलवर राज्य के खालसा क्षेत्रा के राजपूत किसानों ने आंदोलन प्रारम्भ किया। 14 मई, 1925 ई. को कमाण्डर
छाजुसिंह ने किसानों पर मशीनगनें चलाने के आदेश दिए व गांव में आग लगा दी। फलस्वरूप सैकड़ों- स्त्राी-पुरूष व बच्चे हताहत हुए। ‘तरूण राजस्थान’ एवं ‘प्रताप’ नाम समाचार पत्रा ने इस घटना का विवरण प्रकाशित किया।
. महात्मा गांध्ी ने नीमूचाणा हत्याकाण्ड को ‘जलियांवाला बांग काण्ड’ से भी विभीषण बताया और उसे ‘दोहरी डायरशाही’ की संज्ञा दी।
1921 ई. में अलवर राज्य में जंगली सुअरों को अनाज खिलाकर होदों में पाला जाता है। ये सुअर किसानों की खड़ी फसलों को नष्ट कर देते थे। इन सुअरों को मारा नहीं जा सकता था, क्योंकि इनकों मारने पर राज्य की पांबदी थी। सुअरों के उत्वात के कारण 1921 ई. में राज्य के किसानों ने आंदोलन प्रारम्भ कर दिया। अंततः महाराणा ने होदों को हटा दिया तथा कृषकों को सूअर मारने की इजाजत दे दी।
. मेव किसान आंदोलन – अलवर व भरतपुर रियासत के मेवात क्षेत्रा के किसानों ने 1932 में डॉ. मोहम्मद अली के नेतृत्व में आंदोलन शुरू कर दिया।

शेखावाटी किसान आंदोलन :–

बिलाऊ, डूडलोद, मलसीसर, मंडावा तथा नवलगढ़ जो ‘पंचपाणे’ कहलाती थीं शेखावटी की पांच प्रमुख जागीरें थी। शेखावाटी क्षेत्रा में कुल 421 जागीरदार थे।
राज्य सरकार द्वारा भेजे गये कमीशन ने किसानों की कुछ मांगों का समर्थन किया। इस पर ठिकानों को किसानों की कुछ मांगें माननी पड़ी व आंदोलनकारियों से सद्व्यवहार का आश्वासदन
देना पड़ा।
. प्रजामण्डल के कार्यकर्ताओं ने अकाल राहत कार्यों में शेखावटी के कृषकों को बड़ी सेवा कीं किन्तु समाज सेवी प्रजामण्डल सदस्य जमनालाल बजाज को गिरफ्रतार कर उनके जयपुर प्रदेश
पर रोक लगा दी गई।
. बाद में यह आंदोलन जयपुर में हीरालाल शास्त्राी के नेतृत्व में लोकप्रिय सरकार के गठन के पश्चात समाप्त हुआ।
. 1932 में झुंझुनंू के चौध्री रिसाल की अध्यक्षता में जाट महासभा का अध्विेशन हुआ।

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विश्व के प्रमुख मरुस्थल

महाभारत सामान्य ज्ञान

महाभारत सामान्य ज्ञान उत्तर सहित No.-1. महाभारत का मूल नाम क्या है? – जय संहिता। No.-2. महाभारत का युद्ध कहाँ हुआ? – कुरुक्षेत्र। No.-3. महाभारत का युद्ध कितने दिनों तक चला था? – 18 दिन No.-4. महाभारत का वास्तविक नाम क्या है? – जयसंहिता। No.-5. महाभारत किस वर्ग में आता है? – स्मृति No.-6. महाभारत के अध्यायों को क्या कहते हैं? – पर्व। No.-7. महाभारत के पर्वो (अध्याय) की संख्या कितनी है? – 18 पर्व No.-8. महाभारत के युद्ध का धृतराष्ट्र को वर्णन किसने किया? – संजय। No.-9. महाभारत के युद्ध का मुख्य कारण क्या था? – द्रौपदी के केश No.-10. महाभारत के रचयिता का क्या नाम है? – वेद व्यास। No.-11. महाभारत के रचयिता महर्षि व्यास के पिता कौन थे? – पराशर No.-12. महाभारत के लेखन का कार्य किसने किया? – गणेश जी ने। No.-13. महाभारत को अन्य किन नामों से जाना जाता है? – जय, भारत No.-14. महाभारत में कितने अक्षौहिणी सेना समाप्त हुई? – 18 No.-15. महाभारत में कीचक वध किस पर्व के अंतर्गत आता है? – विराट पर्व No.-16. महाभारत में कृष्ण की सेना किसकी ओर से लड़ी? – कौरवों की ओर से No.-17. महाभारत में कौ

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